नए रिश्ते जुड़ न पाए, और पुराने टूट रहे है,
कभी गाँठ पड़ी थी जिनमे, वो धागे टूट रहे है,
नफरत के इस आंधी मे, कुछ अपने छूट रहे है,
जिस कांच की है ये दुनिया, वो शीशे टूट रहे है|

-आकाश


It's like a double-edged sword, either you can use it as a criticism on current political scenario where parties are making and breaking alliances. Or you can treat is as an sentimental poem targeted at human relationship.