उसकी चोली में पैबंद लगे हुए है,
वो सीने से अपने बच्चो को चिपकाये हुए है,
कभी सड़क पर बैठती, फिर अचानक उठ जाती,
क्या ढूंढ रही है ?
हाथ में तो चुम्बक है,
शायद इससे वो लोहा छाटेगी,
फिर आज की कमाई से मिलने वाली एक रोटी,
अपने बच्चों के साथ बाटेगी |

वो एम् जी रोड के किनारे,
तेरह नंबर के पाइप में रहती है,
और सर्दी, गर्मी, बरसात के साथ-साथ,
वक़्त के थपेड़ो को भी सहती है |

अभी वो जवान है, शायद इसीलिए,
कभी-कभी उस पाइप में से,
चीखने-सुबकने की आवाजें आती है,
पर कोई क्या करे,
जब कानून के रक्षक ही इंसानियत का खून करते है,
और उस अभागन को हर रात मजबूर करते है |

आज उसके जीवन का लक्ष्य,
बिन बाप के वो दो बच्चे है,
जिनके बाप का नाम,
शायद वो जानना भी नहीं चाहती,
वो भी तो इसी तरह पाइप में जन्मी थी,
और शायद पाइप में ही मर जायेगी,
लेकिन अपनी औलाद की खातिर,
अब मजबूर तो क्या, वैश्या भी बन जायेगी|  

-आकाश