I found This poem at facebook shared by someone and couldn't resist myself from sharing it here...
ये किस तरह याद आ रही हो, ये ख्वाब कैसा दिखा रही हो की जैसे सच मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो ये जिस्म नाजुक, ये नर्म बाहें , हसीं गर्दन , सिडोल बाजू शगुफ्ता चेहरा , सलोनी रंगत घनेरा जूडा , स्याह गेसू नशीली आँखें , रसीली चितवन दराज़ पलकें , महीन अबरू तमाम शोखी , तमाम बिजली तमाम मस्ती , तमाम जादू हज़ार जादू जगा रही हो ये ख्वाब कैसा दिखा रही हो
गुलाबी लब , मुस्कुराते आरिज़ ज़बीं कुशादा , बुलंद कामत निगाह में बिजलियों की झिलमिल अदाओं में शबनमी लताफत धड़कता सीना , महकती सांसें , नवां में रस , अन्ख्रियों में अमृत हमान हलावत , हमान मलाहत हमान तरन्नुम , हमान नजाकत लचक लचक गुनगुना रही हो ये ख्वाब कैसा दिखा रही हो
तो क्या मुझे तुम ज़िला ही लोगी गले से अपने लगा ही लोगी जो फूल जुड़े से गिर पड़ा है तड़प के उसको उठा ही लोगी भड़कते शोलों , कड़कती बिजली से मेरा खिरमन बचा ही लोगी घनेरी जुल्फों की छाँव में मुस्कुरा के मुझको छुपा ही लोगी की आज तक आजमा रही हो ये ख्वाब कैसा दिखा रही हो नहीं मोहब्बत की कोई कीमत जो कोई कीमत अदा करोगी वफ़ा की फुर्सत न देगी दुनिया हज़ार अज्म-ए-वफ़ा करोगी मुझे बहलने दो रंज-ओ-गम से , सहारे कब तक दिया करोगी जुनूं को इतना न गुद्गुदाओ पकड़ लूं दामन तो क्या करोगी करीब बड़ती ही आ रही हो ये ख्वाब कैसा दिखा रही हो|
कैफ़ी आज़मी साहब की कलम से...
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Poetry
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Thanks for sharing this with us. i found it informative and interesting. Looking forward for more updates..