समय रूपी पंछी जब आसमान में लम्बा उड़ता है तो रास्ते में उसके पर गिरते रहते है, जो भविष्य में बहुत याद आते है| पिछले साल एक ऐसा ही बहुत ख़ास पर मैंने खो दिया| या फिर यूं कहे की ११ मई की वो शाम, उस पंछी के लिए ऐसा दिन लेकर आई, जिसे वह कभी नहीं भूल सकता| ऐसा लगता था की किसी दुष्ट बहेलिये ने गर्दन से पकड़ लिया हो और पूरी ताकत से गला दबाने की कोशिश कर रहा हो| उस समय तो किसी तरह अपनी गर्दन उस बहेलिये से छुड़ा ली, लेकिन आज भी रह रह कर जो दर्द होता है, उसे न किसी से कह सकते है और न ही अनदेखा कर सकते है|

११ मई २०११ को बिलकुल सामान्य दिनों की तरह मैंने मम्मी को फ़ोन लगाया. यूं तो में रोज़ ही मम्मी या पापा से बात कर लिया करता था, परन्तु कुछ दिनों से ऑफिस में काम की वजह से समय ही नही मिल पा रहा था| अचंभित रूप से फ़ोन मम्मी की जगह पापा ने उठाया, मुझे लगा की आज तो दोनों से एक साथ बात हो जायेगी| पापा ने फ़ोन उठाते ही बोला "५ मिनट में वापस कॉल करता हूँ, मम्मी की तबियत कुछ सही नहीं है|" चिंता तो मुझे हुई, लेकिन लगा की शायद गर्मी की वजह से थोड़ी ब्लड -प्रेशर की समस्या होगी| १० मिनट बाद जब मैंने दुबारा कॉल किया, तो फ़ोन पापा की जगह, हमारे पडोसी से उठाया, और बोला "बेटा, मम्मी की तबियत ज्यादा खराब हो गयी है, आप सब लोग आ जाओ", थोडा दिमाग ठनका, लेकिन जो घटा था, वो कल्पना से परे था| वैसे तो किसी असामान्य घटना के बुरी आशंका ही होती है है, लेकिन यह एक प्रलय के समान था, जिसकी कल्पना तो में सपने में भी नहीं कर सकता था|

में कैसे विश्वास कर लूं की जो दादी २ दिन पहले अपनी पोती के जन्मदिन में गुब्बारे फुलाने की जिद कर रही थी, हमेशा के लिया उसी पोती को छोड़ कर चली गयी थी| कैसे विश्वास कर लूं, की जिन हाथों ने जीवन भर हमारी ख्वाहिशों की पूरा करने के लिए अपनी इच्छाओ का गला घोटा, आज उन्ही हाथों के साया हमेशा के लिए हमारे सर से उठ चूका है| कैसे एक दिन में "मम्मी से ये बात करेगे" से "मम्मी होती तो यह बात करते" हो गया| कैसे?

आज हमारी मम्मी हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी याद हमारे ज़हन से कभी नहीं जायेगी| आज भी कुछ करना होता है तो पहली प्रतिक्रिया यही होती है की मम्मी ऐसे करती थी| हम हमेशा कोशिश करेगे की सदा ऐसे काम करें की मम्मी जहाँ भी हो, उन्हें गर्व महसूस हो|