आज लेने पहुचे हम एक नेता का साक्षात्कार,
खा गए चक्कर देख कर उनका आकार,
वैसे तो वो सिर्फ़ ग्यारह बच्चो के अब्बा थे,
पर साइज़ में पूरा रेल का डब्बा थे,
लगता था कि पूरे देश का चारा उन्होंने ही खाया था,
भैस तो भैस, बकरियों को भी डराया था,
अब ज्यादा क्या कहे उनकी हैल्थ को लेकर,
सोचा, निकालेगे हकीकत उनकी अनसोशल वेल्थ को लेकर ।

मैंने अपना पहला प्रश्न पुछा,
आपकी सरकार में कितने मंत्री रिश्वतखोर है?
वो बोले, क्या कर लोगे अगर सब के सब चोर है?
में डर गया, फिर भी अपना दूसरा प्रश्न दागा,
पर किस्मत थी ख़राब, फिर फँस गया मैं अभागा,
पूछा, आपकी सम्पत्तीं कितनी है?
वो बोले, नेता बनने के पहला या उसके बाद,
अच्छा-अच्छा लिखना, वरना कर दूगा तुझे बरबाद ।

तभी मुझे याद आया, और मैंने उन्हें बताया,
कि आने वाला है इलेक्शन,
अब तो बदलो अपनी आवाज़ का सेक्शन,
फिर क्या था, मेरे ही सवाल थे और मेरे ही जवाब,
में था उनकी कुर्सी पर, खड़े हुए थे जनाब,
अब वो मेरे सवालो पर अच्छे से विचार कर रहे थे,
और साथ-साथ अपने पार्टी मेनिफेस्टो का प्रचार कर रहे थे ।

देखा आपने, कि कितने रंग कि होती है इन नेताओं की खाल,
और मुझे तो शक है, की इनका खून भी नही होता लाल,
तो मेरे देश के बच्चों, बूडो और नौजवानों, अब तो अपनी आँखें खोलो,
कुछ न कर सको तो, विरोध के स्वर ही बोलो,
ताकि ये देश, अपने देशवासियों के दम पर कुछ कर दिखाए,
और अपना प्यारा भारत फिर से विश्व गुरु कहलाये ।

-आकाश

PS: Above was my first poem, I have written in college time. It was written as a humorous critic on political leaders. This poem should have come on this blog before general election 2009 to act more aptly.

Disclaimer: This poem is not targeted at any particular politician but at all politician leaders in general. Any resemblance to real persons, living or dead, is purely coincidental.